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Sunday, March 24, 2013

Kadamb ka Ped



यह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली

किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता

उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता

अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता

माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे

ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता

और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता


तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती

जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे

यह कदंम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे,

Friday, November 2, 2012

Paani Aur Dhoop

Remembering my childhood and also one of the greatest poetess of Hindi poetic history "Subhadra Kumari Chauhan". I still remember reciting "Yeh Kadam ka Ped" and "Khoob Ladi Mardani" along with my sister and jumping all around the house. Presenting the favorite of mine here.



अभी अभी थी धुप बरसती , लगा कहाँ से ये पानी
किसने फोड़े घड़े बादल के, की इतनी शैतानी |

सूरज ने क्यूँ बंद कर लिया, अपने घर का दरवाजा,
उसकी माँ ने भी क्या उसको, बुला लिया कह कर आजा |

जोर जोर से गरज रहें हैं, बादल हैं किस पे काका, 
किसको डांट रहे है किसने, कहना नहीं माना माँ का |

बिजली के आगन में माँ, चलती हैं किसकी तलवार,
कैसी चमक रही है फिर भी, क्यूँ खली जाते वार |

क्या अब तक तलवार चलाना, वो सीख नहीं पाए,
इस लिए क्या आज वो, असमान पे सीखने आए |

एक बार भी माँ यदि मुझको, बिजली के घर जाने दे,
उसके बच्चों को तलवार चलाना, सिखला आने दे |

खुश होकर तब बिजली देगी, मुझे चमकती सी तलवार,
तब माँ कोई न कर सकेगा, अपने ऊपर अत्याचार |

पुलिसमैन अपने काका को, फिर ना पकड़ने आएंगे,
देखेंगे तलवार दूर से ही, वे सब ही दर जाएंगे |

अगर चाहती हो माँ काका, जाएँ अब ना जेलखाना,
तो फिर बिजली के घर मुझको, तुम जल्दी से पहुँचाना |

काका जेल ना जाएंगे अब, तुझे दिलवा दूँगी तलवार,
पर बिजली के घर जाने का, अब मत करना कभी विचार |